Madhya Pradesh ke Pramukh Swatantra Senani | मध्यप्रदेश के 1857 की क्रांति के प्रमुख सेनानी

हेलो ! स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट पर दोस्तों उम्मीद आप सभी अपने-अपने क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहे होंगे । मध्यप्रदेश लोक सेवा परीक्षा MPPSC को ध्यान में रखते हुए आज हम आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक लेकर आए हैं जो मुख्य परिक्षा और प्रारंभिक परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।टॉपिक का नाम है मध्यप्रदेश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी यह टॉपिक एमपीपीएससी परीक्षा के लिए एक उपयोगी टॉपिक है।

मैने देखा है इस विषय संबंधित जानकारी इंटरनेट पर कई जगह उपलब्ध है लेकिन उसकी तथ्यातमक प्रमाणिकता पर सवाल उठते हैं इसलिए हम आपके लिए मध्यप्रदेश बोर्ड की कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान की किताब में दी गई जानकरी के आधार पर आपके लिए ये जानकारी लेकर आए हैं।

हम समय - समय पर MPPSC के अभ्यर्थियों के महत्वपूर्ण स्टडी मटेरियल इस वेबसाइट पर उपलब्ध कराते हैं आप हमारी वेबसाइट विजिट करते रहें । साथ ही हमारे साथ टेलीग्राम , फेसबुक जैसे अन्य माध्यमों से भी आप जुड़ सकते हैं ताकि आपको नए अपडेट्स मिलते रहें।

              संग्राम के प्रमुख सेनानी


🔹महारानी लक्ष्मीबाई

सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की केन्द्रीय पात्र रानी लक्ष्मीबाई झाँसी की रहने वाली थी, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण युद्ध मध्यप्रदेश में लड़ते हुए अंग्रेजों को कड़ी चुनौतियाँ दी व पराजित भी किया। तात्या टोपे की मदद से उन्होंने ग्वालियर किले पर अधिकार कर लिया था। अंग्रेज सेनापति ह्युरोज् ने जब ग्वालियर को चारों ओर से घेर कर आक्रमण किया, रानी लक्ष्मीबाई बहुत वीरता से लड़ीं, 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास युद्ध करते हुए बाबा गंगादास के बगीचे में वीरगति को प्राप्त हुई। रानी का शरीर अंग्रेजों के हाथ न लगे। इसीलिए गंगादास को कुटिया के पास रखो घास को गंजियों में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। रानी का पीछा करते हुए अंग्रेजों की सेना ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया। बाबा गंगादास के सहयोगी करीब दो-तीन सौ साधु सन्यासी इस संघर्ष में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। रानी लक्ष्मीबाई का समाधि स्थल ग्वालियर में है। अंग्रेज जनरलों ने भी उनका लोहा मानते हुए उन्हें 'सर्वाधिक पौरुषवाली' कहकर उनकी वीरता को सम्मान दिया।





🔹तात्या टोपे 

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के उल्लेखनीय वीर सेनानी तात्या टोपे, ने रानी लक्ष्मीबाई को ग्वालियर पर अधिकार करने में मदद की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद भी तात्या टोपे मध्यप्रदेश व अन्य स्थानों पर गुरिल्ला पद्धति से 2 वर्ष तक अंग्रेजों से लड़ते रहे। एक मित्र के विश्वासघात के कारण तात्या को कैद कर लिया गया और शिवपुरी में फाँसी दे दी गई।

🔹 वीरांगना रानी अवंती बाई

मंडला जिले के वीर सेनानियों में रामगढ़ की रानी ने भी अपनी मातृभूमि के प्रति जिस प्रेम तथा शौर्य का प्रदर्शन किया था, उसके कारण उन्हें हमारे देश की महानतम वीरांगनाओं में स्थान है। रामगढ़ मंडला जिले की पहाड़ियों में स्थित एक छोटा-सा नगर है। सन् 1850 में रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह को मृत्यु के उपरांत उनके एकमात्र पुत्र विक्रमजीत सिंह को मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण शासन के अयोग्य समझते हुए अंग्रेज सरकार ने शासन प्रबंध अपने हाथ में ले लिया और यहाँ एक अपना अधिकारी नियुक्त कर दिया, एवं राज परिवार के भरण-पोषण के लिए वार्षिक वृत्ति बाँध दी रानी अवंतीबाई (राजा लक्ष्मण सिंह की पत्नी) रामगढ़ में एक अत्यंत योग्य एवं कुशल महिला थी जो अपने पुत्र के नाम पर राज्य का योग्य प्रबंधन व संचालन कर सकती थी, लेकिन उस समय अंग्रेजों की हड़प नीति चरम सीमा पर थी रानी ने अपना विरोध प्रकट करते हुए रामगढ़ से अंग्रेजों द्वारा नियुक्त अधिकारी को निकाल भगाया और अपने राज्य का शासन सूत्र अपने हाथ में ले लिया। साथ ही उसने जिले के ठाकुरों और मालगुजारों से समर्थन हेतु सम्पर्क स्थापित किया। पड़ोस के अनेक जमींदारों ने उन्हें सहायता देने का वचन दिया। रानी, सैनिक वस्त्र धारण कर हाथ में तलवार लेकर स्वयं अपने सैनिकों का रणक्षेत्र में नेतृत्व करती थी। अप्रैल 1858 को अंग्रेजों की सेना ने रामगढ़ पर दोनों ओर से आक्रमण किया, जिस कारण रानी और उनकी सेना रानी अवंती बाई ने अपनी शक्ति और स्थिति को देखते हुए किला खाली कर दिया और पास के जंगल में चली गई। वहीं से रानी अंग्रेजों पर निरंतर आक्रमण करती रहीं, परन्तु इनमें से एक आक्रमण घातक सिद्ध हुआ। जब उन्होंने देखा कि वह घिर गई और उसका पकड़ा जाना निश्चित है, वीरांगनाओं की गौरवशाली परम्परा के अनुरूप बंदी होने की अपेक्षा मृत्यु को श्रेष्ठतर समझा और क्षणमात्र में अपने घोड़े से उत्तर कर अपने अंगरक्षक के हाथ से तलवार छीनकर उसे अपनी छाती में घोंप कर हँसते-हँसते मातृभूमि के लिए बलिदान दे दिया।

🔹राजा बख्तावर सिंह 

अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को चिंगारी प्रज्जवलित होने में अमुझेरा (धार से लगभग 30.कि.मी.) के राजा बख्तावर सिंह मालवा के पहले शासक थे, जिसने कम्पनी के शासन का अंत करने का बीड़ा उठाया था, अंग्रेजों की सेना राजा ने कड़ी टक्कर दी, किन्तु अपने ही सहयोगियों द्वारा विश्वासघात के कारण बख्तावर सिंह गिरफ्तार किए गए। अंग्रेजों ने उन्हें इन्दौर में फाँसी पर चढ़ा दिया।

🔹 सआदत खाँ और भगीरथ सिलावट

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इंदौर के सआदत खाँ और भगीरथ सिलावट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने अंग्रेज सैनिक अधिकारियों का डटकर मुकाबला किया। अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिए जाने पर इन्हें फाँसी दे दी गई। इनका बलिदान उल्लेखनीय है।

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🔹राजा शंकर सिंह और रघुनाथ शाह

1857 की क्रांति में जबलपुर की विशिष्ट भूमिका रही। रानी दुर्गावती के वंशज एवं गॉड राजघराने के वृद्ध राजा शंकरशाह व उनके युवा पुत्र रघुनाथ शाह का बलिदान अविस्मरणीय था। इन्हें बहादुर सैनिकों तथा ठाकुरों ने मिलकर अंग्रेजी सेना के विरुद्ध बगावत करने की योजना का नेता बनाया। दुर्भाग्यवश क्रियान्वयन के पूर्व ही योजना का भंडाफोड़ हो गया, फलस्वरूप अंग्रेजों ने उन दोनों को गिरफ्तार कर रेसीडेन्सी (वर्तमान कमिशनर कार्यालय) ले जाया गया। मुकदमा चलाने का नाटक करके भारी भीड़ के सामने 18 सितम्बर 1857 को पिता-पुत्र दोनों को तोप के मुँह पर बांधकर उड़ा दिया गया।

🔹ठाकुर रणमत सिंह

1857 में सतना जिले के मनकहरी ग्राम के निवासी ठाकुर रणमत सिंह ने भी अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। पोलिटिकल एजेंट की गतिविधियों से क्षुब्ध होकर ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध झंडा उठाया, उन्होंने अपने साथियों के साथ चित्रकूट के जंगल में सैन्य संगठन का कार्य कर नागौद की अंग्रेज रेजीडेन्सी पर हमला कर दिया। यहाँ के रेजीडेंट भाग खड़े हुए। ठाकुर रणमत सिंह ने कुछ दिन बाद नौगाव छावनी पर भी धावा बोला एवं बरौधा में अंग्रेज सेना की एक टुकड़ी का सफाया कर डाला। ठाकुर रणमत सिंह पर 2000 रु. का पुरस्कार घोषित किया गया। लंबे समय तक अंग्रेजों से संघर्ष करने के पश्चात् जब रणमत सिंह अपने मित्र के घर विश्राम कर रहे थे धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1859 में फाँसी पर चढ़ा दिया।

🔹दिमान देसपत बुन्देला

ये महाराजा छत्रसाल के वंशज थे। दिमान देसपत ने 1857-58 में अंग्रेजी फौज को कड़ी चुनैतियाँ दीं. उन्होंने तात्या टोपे की मदद के लिए एक हजार बंदूकची भी भेजे थे। देसपत ने अपने बल से शाहगढ़ रियासत के फतेहपुर के इलाके पर भी कब्जा कर लिया था। देसपत की शक्ति इतनी बढ़ी हुई थी कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 5000 रु. का इनाम घोषित कर रखा था। लंबे संघर्ष के बाद सन् 1862 में नौगाँव के कुछ मील दूर पर वीर देसपत बुंदेला मारे गए।

🔹महादेव शास्त्री

ग्वालियर के महादेव शास्त्री एक प्रखर राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने शस्त्र तो नहीं उठाए लेकिन नाना साहब पेशवा को दिए गए सहयोग के कारण उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया। महादेव शास्त्री ने ग्वालियर में तात्या टोपे के पक्ष में वातावरण तैयार किया। नाना साहब पेशवा का पत्रवाहक बनकर क्रांति की जानकारी अन्य सेनानियों तक पहुँचाई। अंग्रेज सरकार ने महादेव शास्त्री की गतिविधियों को देखते हुए उन्हें गिरफ्तार कर फाँसी दे दी। अमीरचन्द वाढिया को भी फाँसी दी गई।

🔹बड़वानी के खाज्या (काजा) नायक और भीमा नायक

मालवा और निमाड़ क्षेत्र के भील स्वतंत्रता प्रेमी थे। अंग्रेजों ने उन्हें दबाने के लिए 'भील कोर' नाम की एक सैनिक टुकड़ी बना रखी थी खाज्या और भीमा, भील कोर में नायक के पद पर कार्यरत थे। अंग्रेजों की दमनात्मक नीति के विरुद्ध इन दोनों ने भी सन् 1857 के संग्राम में अपनी विद्रोहात्मक गतिविधिय तेज कर दीं। इनसे परेशान होकर अंग्रेजों ने इन्हें पकड़ने के लिए सघन अभियान चलाया। खाज्या को 1860 में धोखे से मार दिया गया, जबकि भीमा नायक ने संघर्ष जारी रखा। सन् 1867 में उसे भी धोखे से बंदी बना लिया गया।

उपरोक्त के अतिरिक्त 1857 की क्रांति में मध्यप्रदेश के सेवढा (दतिया) के राव खलकसिंह दौआ, राघोगढ (देवास) के दौलत सिंह, भोपाल के वारिस मोहम्मद खाँ, अम्बापानी (भोपाल) के नवाब आदिल मोहम्मद खाँ और फाजिल मोहम्मद खाँ, सोहागपुर (शहडोल) के गरूल सिंह इत्यादि की भूमिका महत्वपूर्ण रही। दिया भील

🔹टंट्या भील

1857 की महासमर के बाद मध्यप्रदेश के पश्चिमी, निमाड़ में टांट्या भील ब्रिटिश सरकार के लिए आतंक का पर्याय था। उसके साथी दोपिया और बिजनिया भी उसकी क्रांतिकारी गतिविधियों में सहभागी थे। वर्षों तक जनजीवन में घुले-मिले रहकर गुप्त ढंग से क्रांन्तिकारी कार्यवाहियाँ करते रहकर उसने ब्रिटिश सरकार को कंपा दिया था। धोखे और षड्यंत्रपूर्वक अंग्रेजों ने टांट्या को गिरफ्तार किया और नवम्बर 1886 में फाँसी पर लटका दिया। भीलों के बीच आज भी टांट्या प्रेरणास्वरूप मौजूद हैं।

उपरोक्त के अतिरिक्त 1857 की क्रांति में मध्यप्रदेश में विभिन्न स्थानों पर सक्रिय रहे अन्य प्रमुख क्रांतिकारी निम्न लिखित हैं।

🔹 सेवढा (दतिया) के राव खलकसिंह दौआ

🔹 राघोगढ (देवास) के दौलत सिंह

🔹 भोपाल के वारिस मोहम्मद खाँ

🔹अम्बापानी (भोपाल) के नवाब आदिल मोहम्मद खाँ और फाजिल मोहम्मद खाँ

🔹 सोहागपुर (शहडोल) के गरूल सिंह 

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